20 दिन बाद जागी पुलिस: दलित महिला सरपंच की शिकायत पर 16 के खिलाफ केस दर्ज, सरकारी संपत्ति क्षति और एट्रोसिटी एक्ट में कार्रवाई

मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के छैगांव माखन ब्लॉक की ग्राम पंचायत सिलोदा में दबंगों द्वारा पंचायत भवन की बाउंड्री वाल को तोड़ दिया गया था, रोकने गई गांव की दलित वर्ग की महिला सरपंच के साथ भी मारपीट कर अपशब्द कहे गए थे, मामले में सरपंच द्वारा शिकायत के साथ वीडियो भी उपलब्ध कराए गए थे, बावजूद आरोपियों के प्रभाव के चलते एफ आई आर दर्ज होने में ही बीस दिन लग गए..

20 दिन बाद जागी पुलिस: दलित महिला सरपंच की शिकायत पर 16 के खिलाफ केस दर्ज, सरकारी संपत्ति क्षति और एट्रोसिटी एक्ट में कार्रवाई
एक दलित महिला सरपंच द्वारा ग्राम पंचायत की शासकीय दीवार तोड़ने एवं खुद के साथ हुई मारपीट की शिकायत दर्ज करने में खंडवा की पदम नगर पुलिस को 20 दिन लग गए

खंडवा - क्या कानून और प्रशासन की नजरें तब ही खुलती हैं जब हंगामा थमता है? या फिर दलित महिला सरपंच को न्याय दिलाने के लिए इंतजार और घावों की गिनती बढ़ानी पड़ती है? 20 दिन बाद आखिरकार पुलिस ने ग्राम सिलोदा की दलित महिला सरपंच आरती पगारे की शिकायत पर कार्रवाई की है, जिसमें गाँव के 16 लोगों पर सरकारी संपत्ति तोड़ने, धक्कामुक्की और मारपीट का मामला दर्ज हुआ है।

बाउंड्रीवाल टूटती है, कानून कब टूटेगा?

ग्राम पंचायत सिलोदा में सरकारी जमीन पर पंचायत ने बाउंड्रीवाल बनाई थी। लेकिन शायद कानून के साथ-साथ उस दीवार में भी दरारें थीं, जिन्हें कुछ दबंगों ने 16 अक्टूबर की रात आकर हथौड़े से और जज्बातों से भर दिया। सरपंच आरती पगारे ने बताया कि बाउंड्रीवाल तोड़ने के दौरान उन्होंने हस्तक्षेप किया, लेकिन जवाब में उन्हें धक्का-मुक्की और चोटें मिलीं। क्या गाँव की मुखिया का हक इतना कम है कि उसे यूँ ही बलपूर्वक दबा दिया जाए?

क्या कानून केवल इंतजार का दूसरा नाम है?

शिकायत के बाद भी पुलिस को 20 दिन लगे आरोपियों पर कार्रवाई करने में, जबकि वीडियो फुटेज में सभी की पहचान हो चुकी थी। क्या यह देरी एक सोची-समझी रणनीति थी, या फिर प्रशासन की उदासीनता का सबूत? नामजद आरोपियों में लक्ष्मीनारायण, वासुदेव, यशवंत, मुकेश, रामचरण, परमानंद, रामेश्वर, राजू, मयंक, अनिल, नंदलाल, कमलेश, दिलीप, संतोष, कविता और दुर्गा शामिल हैं। पुलिस ने इन पर सरकारी काम में बाधा, संपत्ति क्षति, मारपीट और एट्रोसिटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया है।

दलित महिला पर हमला: क्या इस देरी के पीछे दबंगों का दबाव था?

यह केवल दीवार का मसला नहीं, बल्कि समाज में जातीय असमानता और दबंगई के मेल की कहानी है। एक दलित महिला सरपंच, जो अपने हक की लड़ाई लड़ रही थी, क्या उसके सम्मान की इतनी कम कीमत है कि उसे न्याय पाने के लिए भी प्रशासन से संघर्ष करना पड़े? आखिर कब तक हमारे समाज में न्याय की राह में ऐसे गड्ढे खोदे जाते रहेंगे?

तो सवाल यह है कि 20 दिन तक चुप्पी साधे बैठी पुलिस का यह ढुलमुल रवैया क्या दर्शाता है?

क्या दलित महिला सरपंच का संघर्ष इतना आसान है कि कानून का हाथ उस तक पहुँचने में हिचकिचाता है? ऐसे में न्याय का दम भरने वाले कौन से नियम और संवेदनाएँ हैं, जो इन दबंगों की दबंगई पर चुप्पी साधे हैं? यह मामला केवल एक बाउंड्रीवाल का नहीं, बल्कि कानून और प्रशासन की उस धार की परीक्षा है, जो एक दलित महिला सरपंच के हक की रक्षा करने में कितनी सक्षम है।

इधर पुलिस का कहना है कि वीडियो में आरोपियों की पहचान करने के बाद फरियादिया सरपंच एवं गवाह के बयान लेने के बाद प्रकरण दर्ज किया गया है, आगे की कार्रवाई भी की जाएगी। घटना वाले दिन 16 अक्टूबर को रात में सिलोदा गांव के 100 से ज्यादा लोग भी पदमनगर थाने पहुंचे थे।