नर्मदा जयंती आज मैं नर्मदा हूं. भारत की जीवनदायिनी नदी
जहां अधिकांश नदियां पूर्व की ओर बहती हैं, वहीं मेरा प्रवाह पश्चिम की ओर है। मेरा जन्म अमरकंटक की पर्वत श्रृंखलाओं में हुआ और मैं अरब सागर में समाहित होती हूं। मेरी धारा चट्टानी भूमि से होकर गुजरती है...

मैं नर्मदा हूं। जब गंगा नहीं थी, तब भी मैं थी। जब हिमालय अस्तित्व में नहीं था, तब भी मैं प्रवाहित हो रही थी। मैं भारत की उन प्राचीनतम नदियों में से एक हूं, जिसने समय के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मेरे तटों पर ऋषियों की साधना गूंजी, तपस्वियों का तप साक्षी बना, और सभ्यता के विकास में मेरा योगदान अमिट रहा।
नर्मदा: इतिहास और आध्यात्मिक महत्व
मुझे भारत की सात प्रमुख पवित्र नदियों में स्थान प्राप्त है। पुराणों में मेरा उल्लेख गंगा के बाद सबसे अधिक किया गया है। स्कंदपुराण का "रेवाखंड" तो संपूर्ण रूप से मुझे ही समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पुण्य गंगा में स्नान करने से प्राप्त होता है, वह मात्र मेरे दर्शन से ही मिल जाता है।
मैं भारत की अन्य नदियों से भिन्न हूं। जहां अधिकांश नदियां पूर्व की ओर बहती हैं, वहीं मेरा प्रवाह पश्चिम की ओर है। मेरा जन्म अमरकंटक की पर्वत श्रृंखलाओं में हुआ और मैं अरब सागर में समाहित होती हूं। मेरी धारा चट्टानी भूमि से होकर गुजरती है, जिससे मेरा प्रवाह बलशाली और अद्वितीय बनता है।
संस्कृति और आरण्यक परंपरा
मेरे तटों पर कभी मोहनजोदड़ो जैसी नागर सभ्यता विकसित नहीं हुई, लेकिन यहां की आरण्यक संस्कृति अत्यंत समृद्ध रही। मेरे किनारे पर अनेक महर्षियों ने अपने आश्रम बनाए, जिनमें मार्कंडेय, कपिल, भृगु, जमदग्नि आदि का उल्लेख प्रमुखता से किया जाता है। इन ऋषियों की यज्ञ वेदियों से उठने वाला धुआं मेरे जल को पवित्रता और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता रहा।
मेरे नामकरण की भी एक विशेष कथा है। एक ऋषि ने मुझे "रेवा" कहा, क्योंकि मेरे प्रवाह में चट्टानों के बीच उछल-कूद देखी गई। वहीं, एक अन्य ऋषि ने मुझे "नर्मदा" नाम दिया, जिसका अर्थ है "आनंद देने वाली नदी"।
प्राकृतिक सौंदर्य और प्रमुख स्थल
मेरे जल में सौंदर्य और जीवन का अद्भुत संगम है। मेरी धारा में कई सुंदर जलप्रपात हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
कपिलधारा
दूधधारा
धावड़ी कुंड
सहस्त्रधारा
मेरे तटों पर कई महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल बसे हैं:
ओंकारेश्वर – भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, जहां श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं।
महेश्वर (प्राचीन माहिष्मती) – ऐतिहासिक नगरी, जहां अहिल्याबाई होल्कर ने भव्य घाटों का निर्माण कराया।
भरूच (भृगुकच्छ) – जहां मैं अंततः अरब सागर में विलीन हो जाती हूं।
समय के साथ मेरा संघर्ष
समय के साथ मेरे स्वरूप में बदलाव आ रहा है। मेरे प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बांध बनाए जा रहे हैं। यह मेरे लिए कष्टप्रद अवश्य है, लेकिन जब मैं प्यासे खेतों, अकालग्रस्त किसानों और जल संकट से जूझते लोगों को देखती हूं, तो मेरा हृदय द्रवित हो उठता है।
मेरे जल से हजारों गांवों को जीवन मिलेगा। सरदार सरोवर बांध जैसे परियोजनाएं किसानों को राहत पहुंचाने और विद्युत उत्पादन के लिए उपयोगी साबित हो रही हैं। यह कार्य मुझे एक आंतरिक संतोष प्रदान करता है।
माँ नर्मदा: श्रद्धा और जीवन का प्रतीक
मेरा प्रवाह केवल जलधारा नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक परंपरा, एक आस्था है। मैं केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक धारा हूं। मेरा हर प्रवाह जीवन को गति देता है और मेरे तट पर हर आरती श्रद्धा को जागृत करती है।
मैंने सदियों से मानवता को पोषित किया है, और आगे भी करती रहूंगी। मेरा अस्तित्व अनंत है, मेरी महिमा अपरंपार है।
त्वदीय पाद पंकजम, नमामि देवी नर्मदे…!
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