वन भूमि पर अवैध उत्खनन: किसके इशारे पर बचाई जा रही है बेलेकर कंपनी?

वन भूमि पर बिना परमिशन उत्खनन मामले में रुधी - देशगांव बाईपास हाइवे बनाने वाली बेलेकर जेवी इंजिनियर कॉन्ट्रैक्टर्स कंपनी पर कार्रवाई के नाम पर की गई देरी पर उठ रहे है कई सवाल कौन है जिम्मेदार और कौन देगा जवाब..

वन भूमि पर अवैध उत्खनन: किसके इशारे पर बचाई जा रही है बेलेकर कंपनी?
वन भूमि पर बेलेकर कंपनी द्वारा किया जा रहा अवैध उत्खनन

वन भूमि पर अवैध उत्खनन: बेलेकर कंपनी को किसका संरक्षण?       

            

कार्रवाई या मिलीभगत: पौधों की बर्बादी, कब तय होगी जवाबदेही? 

           

बिना सत्यापन कैसे मिली NOC? क्या कानून से ऊपर है बेलेकर कंपनी?

खण्डवा में वन विभाग की जमीन पर लगाए गए 25,000 पौधों की हरियाली को उजाड़ने का दुस्साहस, और जिम्मेदार अधिकारी चुप! किसके इशारे पर मेसर्स बेलेकर जेवी इंजिनियर कॉन्ट्रैक्टर्स कंपनी को बचाने की कोशिशें हो रही हैं? 14 अक्टूबर को अवैध उत्खनन के दौरान रंगे हाथ पकड़ी गई पोकलेन मशीन के बावजूद किसी तरह की कार्रवाई क्यों नहीं हुई?



जिम्मेदार कौन? कार्रवाई की बजाय संरक्षण क्यों?



बेलेकर कंपनी की पोकलेन मशीन जब अवैध उत्खनन करती पकड़ी गई, तब वन विभाग और प्रशासन के अधिकारियों ने आंखें क्यों मूंद लीं? बिना किसी अधिकार के डिप्टी रेंजर ने मशीन कंपनी को सुपुर्द क्यों कर दी? क्या कानून के दायरे से बाहर जाकर कोई कंपनी इतने बड़े पैमाने पर वन भूमि पर कब्जा कर सकती है? सवाल यह है कि इस मुद्दे को दबाने के प्रयास क्यों हो रहे थे? 17 अक्टूबर को मामले के समाचार सामने आने के बाद आखिरकार वन विभाग ने कार्रवाई शुरू की, तीन डंपर जब्त किए गए, लेकिन मुख्य सबूत—पोकलेन मशीन—कंपनी के पास क्यों छोड़ दी गई? जिसे बाद में मीडिया के दखल के बाद खंडवा लाया गया।




NOC कैसे जारी हुई? क्या DFO की भी मिलीभगत?

  • (वनमण्डलाधिकारी कार्यालय द्वारा कंपनी के विशाल वसंत वैध को दिनांक 27 सितंबर को जारी की गई NOC)

यह मामला और गहराता है जब पता चलता है कि जिस खसरा नंबर पर उत्खनन हो रहा था, वह भूमि 2018 में अधिसूचना के माध्यम से वन विभाग को हस्तांतरित हो चुकी थी। परंतु यह खसरा राजस्व रिकॉर्ड में दुरुस्त नहीं हो पाया था, राजस्व विभाग के पटवारी द्वारा दिए गए प्रतिवेदन एवं नक्शे में भी उल्लेख है कि खसरा नंबर 489 की दक्षिण भुजा से टोकर खेड़ा हल्के की खसरा नंबर 138 की वन भूमि लगी हुई है इसके बावजूद, डीएफओ ने बिना भौतिक सत्यापन किए "250 मीटर तक कोई वन भूमि नहीं है" का प्रमाणपत्र कैसे जारी कर दिया? क्या यह महज गलती थी, या फिर किसी दबाव में आकर डीएफओ ने ऐसा किया?


(सहेजला पटवारी हल्के के पटवारी द्वारा अपने प्रतिवेदन के साथ दिया गया नक्शा जिसमें साफ उल्लेख है दक्षिण में टोकरखेडा हल्के के खसरा नंबर 138 की वन भूमि)

क्या बेलेकर कंपनी को कानून से ऊपर रखा गया है?

खनिज विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार, जनवरी 2024 तक कंपनी को उत्खनन की अनुमति नहीं थी, फिर भी कंपनी ने कई किलोमीटर क्षेत्र में अर्थवर्क पूरा कर लिया। क्या प्रशासनिक अधिकारियों की मेहरबानी के कारण कंपनी के हौसले इतने बुलंद हो गए कि अब उन्होंने वन भूमि पर भी अवैध उत्खनन शुरू कर दिया?

क्या सच्चाई दबाई जाएगी या कार्रवाई होगी?



अब सवाल यह है कि सैकड़ों पौधे नष्ट होने और वन भूमि पर खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाने के बाद, क्या जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई होगी? या फिर बड़ी कंपनियों के सामने कानून एक बार फिर बौना साबित होगा? सार्वजनिक हितों की इस खुली अनदेखी और वन विभाग के अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका पर पर्दा कब तक डाला जाएगा?

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