खंडवा में वन अतिक्रमण पर बड़ी कार्रवाई | मासूम ऋषिका की माँ जेल में | संवेदनशील रिपोर्ट
खंडवा के जंगलों में 180 हेक्टेयर अतिक्रमण हटाने की ऐतिहासिक कार्रवाई। लेकिन मासूम ऋषिका की माँ की गिरफ्तारी और आदिवासी परिवारों की पीड़ा ने इस कार्रवाई को मानवाधिकार संकट बना दिया है। खबर भारत की ग्राउंड रिपोर्ट।

Khandwa वन अतिक्रमण हटाने की ऐतिहासिक कार्रवाई या मानवीय त्रासदी? – एक संयुक्त रिपोर्ट
रिपोर्ट: खबर भारत न्यूज़ डेस्क
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खंडवा | 180 हेक्टेयर जंगल को कराया मुक्त, लेकिन उठे कई सवाल
खंडवा जिले के गुड़ी वन परिक्षेत्र में प्रशासन और वन विभाग ने एक बार फिर बड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग 180 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया है। यह अभियान भिलाईखेड़ा और अमाखुजरी क्षेत्र में बीते दो दिनों तक चला, जिसमें 25 से अधिक JCB मशीनों और 650 से ज्यादा कर्मचारियों, ड्रोन कैमरों और हथियारों से लैस पुलिस बल की मदद से कब्जा हटाया गया।
DFO राकेश डामोर के मुताबिक, यह क्षेत्र वर्ष 2019-20 से अतिक्रमण की चपेट में था। कई बार कार्रवाई की गई लेकिन पूरी सफलता नहीं मिली थी। इस बार जिला प्रशासन के सहयोग से अतिक्रमण हटाने की योजना को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।
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हरियाली की तैयारी, लेकिन मानवता की अनदेखी?
कार्यवाही के बाद वन भूमि पर जेसीबी से गड्ढे खोदकर वर्षा ऋतु से पूर्व बीज बोने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, ताकि जंगल को फिर से हराभरा किया जा सके। वन विभाग इसे एक “ऐतिहासिक उपलब्धि” बता रहा है।
लेकिन दूसरी ओर, अमाखुजरी जैसे क्षेत्रों में बसे गरीब आदिवासी परिवारों की पीड़ा अब सामने आ रही है। ये परिवार वर्षों से जंगल की जमीन पर झोपड़ी बनाकर थोड़ी-थोड़ी खेती कर जीवनयापन कर रहे थे। अचानक हुई इस कार्रवाई ने उनके घर उजाड़ दिए। कई लोग अब बेघर हैं, और उन्हें कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं दी गई।
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रोती रही मासूम ऋषिका, जेल में बंद उसकी माँ
इस कार्रवाई के दौरान विरोध करने पर 6 महिलाओं और 5 पुरुषों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें अमाखुजरी की अंतुबाई भी शामिल हैं। उनकी 8 महीने की मासूम बेटी ऋषिका को मां से अलग कर दिया गया। जब परिजन बच्ची को लेकर जेल पहुंचे तो केवल मुलाकात की अनुमति दी गई, मां के पास छोड़ने की नहीं।
बच्ची की भूख और मां के लिए तड़पता चेहरा अब पूरे इलाके को झकझोर रहा है। ग्रामीणों ने इस दर्दनाक कहानी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है, जिसमें बच्चे रोते हुए दिखाई दे रहे हैं और अंधेरे जंगल में लोग छिपे हुए हैं।
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आदिवासी संघर्ष मोर्चा की आपत्ति
दलित-आदिवासी संघर्ष मोर्चा की नेता माधुरी बेन ने पीड़ित परिवारों के साथ खंडवा कलेक्टर से मिलने की कोशिश की, लेकिन कलेक्टर ने मिलने से इंकार कर दिया। उन्होंने SP मनोज कुमार राय और DFO राकेश डामोर से मिलकर पीड़ितों के पक्ष में लिखित शिकायत सौंपी।
माधुरी बेन ने आरोप लगाया कि:
पीड़ितों के पट्टे के दावे लंबित थे, लेकिन बिना सुनवाई उन्हें हटाया गया।
झोपड़ी और घरेलू सामान नष्ट कर दिए गए, जिससे परिवार बेसहारा हो गए।
एक महिला गंभीर रूप से घायल हुई, जो अब जिला अस्पताल में भर्ती है।
छोटे बच्चों की माताओं को गिरफ्तार किया गया, जिससे कई बच्चे जंगलों में अकेले रह गए।
उन्होंने इस पूरी कार्रवाई को “अमानवीय और असंवैधानिक” करार दिया।
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प्रशासन की चुप्पी, सवालों के घेरे में नीति
वन विभाग की उपलब्धि के जश्न के बीच यह सवाल गूंज रहे हैं:
क्या बिना पुनर्वास के उजाड़ना जायज़ है?
क्या बच्चों को उनकी माँ से अलग करना मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं?
क्या पट्टा धारकों के दावे की सुनवाई किए बिना कार्रवाई करना संवैधानिक है?
प्रशासन की चुप्पी इन सवालों को और भी गंभीर बना रही है।
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जंगल भी बचें, इंसान भी
यह स्पष्ट है कि जंगलों का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन मानवता और संवेदनशीलता भी उतनी ही जरूरी है। खंडवा की यह कार्रवाई वन सुरक्षा और मानवाधिकार के संतुलन की परीक्षा बन गई है।
सवाल यह नहीं कि जंगल बचे या नहीं,
सवाल यह है कि क्या वहां के बाशिंदों का जीवन भी बचा?
अब ज़रूरत है एक न्यायसंगत पुनर्वास योजना, मानवाधिकार के संरक्षण और जवाबदेही की।
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