सावन के साथ ही कांवड़ यात्रा की हुई शुरुआत, बोल बम के नारे से गूंजने लगा चारों ओर
देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दो महाकालेश्वर उज्जैन और ओंकारेश्वर खंडवा मध्यप्रदेश में स्थित है, दोनो ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिवशंकर के जलाभिषेक के लिए देश भर से भक्त कांवड़ लेकर आते है।
सावन का महीना शुरू होते ही भोले के भक्त शिव शंभु की भक्ति में रंगने लगे है। 2 साल के कोविड प्रोटोकाल के कारण बंद रही कांवड़ यात्रा भी इस बार पूरे जोश के साथ शुरू हो गई है। सावन के दूसरे दिन ही देश के विभिन्न स्थानों से शिवालयों के लिए हजारों कांवड़िए श्रद्धा की कावड़ में भक्ति का पवित्र निर्मल जल लेकर बम भोले के जयकारे लगाते हुए महादेव के मंदिरों की ओर चल दिए है। सावन को भोले बाबा का प्रिय महीना भी कहा जाता है क्योंकि भोलेनाथ को सावन में पवित्र नदियों के जल से अभिषेक करने से बाबा भोले शंकर की विशेष कृपा मिलती है। देश भर में भोले के भक्त अपने आराध्य को मनाने के लिए इस बार कांवड़िए कांधे पर कांवड़ लेकर निकल रहे है।
दो ज्योतिर्लिंग है मध्य प्रदेश में
देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दो महाकालेश्वर उज्जैन और ओंकारेश्वर खंडवा मध्यप्रदेश में स्थित है, दोनो ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिवशंकर के जलाभिषेक के लिए देश भर से भक्त कांवड़ लेकर आते है। इस वर्ष भी कांवड़ यात्रा के कई आयोजन होने है जिनकी शुरुआत सावन के दूसरे दिन उज्जैन से हुई। यहां आयोजित कांवड़ यात्रा में हजारों श्रद्धालुओं ने सहभाग किया। इस कांवड़ यात्रा का आयोजन उज्जैन के पंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर उत्तम स्वामी के नेतृत्व में किया गया था।
महामंडलेश्वर ने बताया कांवड़ यात्रा का महत्व
विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में निकली यह कांवड़ यात्रा त्रिवेणी घाट से शुरू होकर ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मन्दिर तक पहुंची जहां भूत भावन भगवान महाकाल का जलाभिषेक किया गया। यात्रा में बड़ी संख्या में महिला पुरुष सम्मिलित हुवे, मातृशक्ति द्वारा भी कांवड़ में पवित्र जल लेकर देवाधिदेव को समर्पित किया गया। इस दौरान पंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर उत्तम स्वामी ने श्रद्धालुओं को कांवड़ यात्रा का महत्व समझाते हुवे बताया की सावन के अनुपम महीने में बाबा शिव शंकर को अलग अलग स्थानों के पवित्र जल से अभिषेक करने से भोले बाबा प्रसन्न होकर उन सभी स्थानों का उद्धार करते है साथ ही कांवड़ यात्रा के रूप में भोलेनाथ की आराधना करने से बाबा प्रसन्न होकर मन इच्छित फल देकर अपने भक्तों का उद्धार करते है। कांवड़ लेकर पद यात्रा कर की गई भक्ति से महादेव जातकों के जीवन को कठिनाइयों को हर कर उनके लिए दासियों मार्ग खोल देते है। उन्होंने बताया की कांवड़ यात्रा के रूप में महादेव की आराधना का प्राचीन काल से महत्व बताया गया है।
उज्जैन से ओंकारेश्वर और ओंकारेश्वर से उज्जैन
मध्यप्रदेश में ओंकार ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग खंडवा जिले की मांधाता नगरी में पतित पावनी मध्यप्रदेश की जीवन दायिनी मां नर्मदा के किनारे स्थित है वहीं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग राजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन में क्षिप्रा के किनारे स्थित है। दोनो ज्योतिर्लिंग के पास विचरण करती नदियों को पवित्र माना जाता है। जहां भोले बाबा के भक्त नदियों से जल कांवड़ में ले जाकर नीलकंठ महादेव को समर्पित करते है। कई संगठन दोनो ज्योतिर्लिंगों के बीच भी कांवड़ यात्रा निकालते है जिसमे ओंकारेश्वर से जाने वाले श्रद्धालु पवित्र नर्मदा का जल लेकर उज्जैन पहुंचते है वहां महाकाल के जलाभिषेक के बाद क्षिप्रा से वापस जल लेकर ओंकारेश्वर आकार ओंकार ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते है इसी प्रकार उज्जैन से जल लेकर आने वाले श्रद्धालु पहले ओंकारेश्वर का जलाभिषेक करते है फिर नर्मदा जल लेकर महाकाल का जलाअभिषेक करते है। जलाभिषेक के बाद खाली कांवड़ में पवित्र जल लेकर घर जाते है कांवड़िए जहां अपने नगर गांव के शिवालयों में जलाभिषेक के बाद इस जल को घर के पूजन स्थल पर रखा जाता है। और इसका उपयोग वर्षभर घर परिवार में होने वाले मांगलिक कार्यक्रमों में किया जाता है।
समुद्र मंथन से है कांवड़ यात्रा का संबंध
कांवड़ यात्रा को समूचे भारत वर्ष मैं देवाधिदेव महादेव के पूजन के रूप में जाना एवं किया जाता है हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल रूपी विष को नीलकंठ भोलेनाथ ने ग्रहण किया था जो उनके कंठ में आज विराजित है ऐसी मान्यता है कि उस विष के कारण महादेव का शरीर अत्यंत ज्वलंत हो गया था उसी ताप को कम करने के लिए सबसे पहले देवों ने महादेव का जलाभिषेक किया था उसके बाद से ही महादेव के जलाभिषेक की परंपरा चली आ रही है दुनिया भर के शिवालयों में वर्ष भर महादेव का जलाभिषेक निरंतर होता है। सावन के महीने में विशेष रूप से भक्त आपने आराध्य जटाधारी शिव अविनाशी की आराधना के लिए कांवड़ में जल लेकर अर्पित करने शिवालयों में उमड़ते है।