MP Local Election: किसकी होगी इस बार शहर सरकार - खण्डवा
खंडवा सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से काफ़ी सम्पन्न जिला है। दादाजी धूनीवाले की नगरी खंडवा का प्राचीन नाम 'खांडववन' था। खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी और किशोर कुमार का नाम जुड़ा है और ये दोनों शख़्सियत अपने-अपने क्षेत्र की मशहूर हस्ती रही हैं। खंडवा मान्यताओं के अनुसार हजारों वर्ष पुराना है। जिसका आधुनिक रूप वर्तमान खंडवा है।
खबर भारत पर हम स्थानीय निकाय चुनाव के बिच आपकी जानकारी के लिए लाये है यह सीरीज जिसमे आपको बताएँगे नगरीय निकाय वाले जिलों की प्रमुख जानकारियां वहां क्या है किस राजनैतिक दल की स्थिति कौन कौन है प्रत्यासी और उनका मतदाताओं पर क्या रहेगा असर तो बस पढ़ते रहिये हमारी वेबसाइट khabarbharatnews.live पर यह स्थानीय निकाय चुनाव सीरीज--------
खंडवा ज़िले की पृष्ठभूमि
खंडवा सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से काफ़ी सम्पन्न जिला है। दादाजी धूनीवाले की नगरी खंडवा का प्राचीन नाम 'खांडववन' था। खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी और किशोर कुमार का नाम जुड़ा है और ये दोनों शख़्सियत अपने-अपने क्षेत्र की मशहूर हस्ती रही हैं। खंडवा मान्यताओं के अनुसार हजारों वर्ष पुराना है। जिसका आधुनिक रूप वर्तमान खंडवा है। 12वीं शताब्दी में यह नगर जैन मत का महत्त्वपूर्ण स्थान था। यह नगर पुरातन नगर है, यहाँ पाये जाने वाले अवशेषों से यह सिद्ध होता है कि इसके चारों ओर चार विशाल तालाब, नक़्क़ाशीदार स्तंभ और जैन मंदिरों के छज्जे स्थित हैं। खंडवा जिले से ही बुरहानपुर जिला बना है।
संक्षिप्त जानकारी
कुल वार्ड: 50 (25 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित)
महापौर पद के लिए 5 प्रत्याशी मैदान में।
शहर में कुल मतदाता: 1,75,644
पुरुष मतदाता: 87,574
महिला मतदाता: 88,039
अन्य मतदाता: 31
रोचक जानकारी
- जिले में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक।
- नगर निगम के 50 वार्डो में कुल 195 मतदान केंद्र है।
- इस बार शहर विकास का पूरा जिम्मा महिलाओं पर रहेगा। इसके पहले कांग्रेस की अणिमा उबेजा और बीजेपी की भावना शाह महापौर रह चुकी हैं।
- प्रत्यक्ष प्रणाली से अब तक हुए 4 चुनावों में बीजेपी के महापौर उम्मीदवार ही जीत हासिल करते आए हैं।
- मेयर पद की दोनों कैंडिडेट के ससुर किसी समय विधानसभा चुनाव में भी आमने-सामने रहे थे। नब्बे के दशक में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा से हुकुमचंद यादव और कांग्रेस से वीरेंद्र मिश्रा आमने -सामने थे। इसमें यादव ने मिश्रा को पराजित किया था।
- अब दोनों की पुत्रवधु आमने-सामने होंगी।
इलेक्शन फैक्ट
- भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकबला। कुल पांच प्रत्याशी चुनावी मैदान में।
- खंडवा जिला राजनीतिक रूप से भाजपा का गढ़ माना जाता है और खंडवा शहर की विधानसभा सीट से बीजेपी लगातार 1990 से जीतती आ रही है।
- साल 1990 में बीजेपी उम्मीदवार अमृता यादव के ससुर हुकुम चंद यादव भाजपा से चुनाव जीते थे, ऐसे में वर्तमान में भी भाजपा की स्थिति मजबूत नजर आ रही है।
- महापौर चुनाव में एस सी, मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं के मत तय करेंगे कि शहर की सरकार कौन चलाएगा।
प्रत्याशी
भाजपा- अमृता यादव
- राजनीतिक रूप से मजबूत परिवार।
- ससुर स्व. हुकुमचंद यादव चार बार विधायक रहे।
- पति अमर यादव भी दो बार पार्षद, एक बार नगर निगम अध्यक्ष रहे हैं।
- अमृता यादव की खुद की पहचान भी एक सक्रिय कार्यकर्ता की, पहचान का संकट नहीं।
- अशोकनगर की ग्राम पंचायत बिलाखेड़ी में सरपंच रह चुकी हैं।
- यादव समाज का बड़ा वोट बैंक।
- भाजपा के परंपरागत वोटों का सहारा।
भाजपा के लिए चुनौती
- एक ही परिवार में कई टिकट मिले।
- परिवारवाद एक बड़ा मुद्दा।
- लंबे समय से परिवार की राजनीति छोटे चुनाव तक सीमित। अब बड़ा चुनाव लड़ रहे हैं।
- लगातार महापौर चुनाव में भाजपा पर बाहरी प्रत्याशी उतारने का लग रहा आरोप।
कांग्रेस- आशा मिश्रा
- परिवार भी राजनीति से संबद्ध।
- ससुर वीरेंद्र मिश्रा (बल्ली) विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं।
- पति अमित मिश्रा पार्षद रह चुके हैं, खुद की टीम अच्छी।
- स्थानीय (खंडवा की बेटी) होने का लाभ।
- ब्राह्मण और अल्पसंख्यक वोटों का सहारा।
- भाई प्रवीण विश्वकर्मा युवक कांग्रेस के अध्यक्ष है।
कांग्रेस की चुनौती
- खुद पहले कभी चुनाव नहीं लड़ीं और शुद्ध गृहणी हैं।
- कार्यकर्ताओं के बीच पहचान का संकट। सारा दारोमदार पति पर निर्भर।
- भाजपा की तुलना में शहर में कांग्रेस का संगठन कमजोर।
- विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार हार।
- पार्टी में गुटबाजी चिंता का विषय।
- टिकट वितरण में अरुण यादव की जिले में नहीं चली, जो बन सकता चिंता का कारण।
- अरुण यादव नहीं चाहते थे कि बल्ली मिश्रा के परिवार को पावर मिले लेकिन फिर भी उनकी पुत्रवधू को टिकट मिल गया।
पिछले चुनावों का गणित
- खंडवा से 2005 के चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे वीर सिंह हिंडौन ने जीत दर्ज की। 2010 में हुए चुनाव में मंत्री विजय शाह की पत्नी भावना शाह ने भाजपा से जीत दर्ज की और 2015 में भाजपा के ही सुभाष कोठरी ने जीत दर्ज की।
- 2015 के चुनाव में सुभाष कोठरी ने कांग्रेस के अजय ओझा को करीब 5 हजार वोटों से हराया था।
- 2005 से लगातार कांग्रेस शहर में बाहुल्य ब्राह्मण मतदाताओं को टारगेट करते हुए ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे लेकिन उसे हार ही मिली और 2010 के चुनाव में भी मंत्री विजय शाह की पत्नी भावना शाह के सामने ब्राह्मण समाज की सुनिता सकरगाये मैदान में थी। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
खंडवा की जनता से जुडी समस्याएं
- खंडवा शहर में पेयजल आपूर्ति के लिए नगर निगम अब तक डेढ़ सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च कर चुकी है। बावजूद इसके पानी की किल्लत शहर में बनी हुई है।
- नर्मदा जल की बार-बार फूटती पाइप लाइन, जिसका अब तक कोई स्थाई निदान नहीं हुआ है। पाइप लाइन फूटने से शहर में जल संकट और अधिक गहरा जाता है।
- फ्लैट रेट पर ₹200 प्रतिमाह की दर से जलकर का भुगतान करने पर भी लोगों को अपनी जरूरत का पानी नहीं मिल पाता है। जिले के लिए जलसंकट सबसे बड़ी समस्या है।
- शहर की सड़कों की हालत भी कुछ खास नहीं है। शहर की अधिकांश सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई हैं और कहीं पैच वर्क करके काम चलाया जा रहा है।
- शहर के मुख्य बाजारों में पसरे पक्के अतिक्रमण यातायात में बाधक बनते हैं, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- शहर के मुख्य बाजारों में पार्किंग ना होने के चलते लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शहर के कई वार्ड ऐसे हैं, जहां पर ना सड़क है, ना पानी है, ना बिजली के खंभे पर जलती हुई ट्यूबलाइट है।
- नगर के सिविल लाइन क्षेत्र में बरसों से बन रहा स्विमिंग पूल अब तक अधूरा है।
- ट्रांसपोर्ट नगर अब तक अधूरा पड़ा हुआ है।
- रिंग रोड न होने से भारी मालवाहक बिच शहर से गुजरते हैं!
-कोई बड़ा उद्योग नहीं होने से बेरोजगारी भी बड़ी समस्या हैं!
देखना होगा सत्ता और संगठन के मजबूत जोड़ के साथ मैदान सम्हाल रही भाजपा प्रत्यासी मतदाताओं तक अपनी बात रखने में सफल होती हैं या लगातार शहर से लेकर केंद्र तक सरकार होने के बावजूद शहर के पिछड़े पन को मतदाताओं के जहन में उतार कर कांग्रेस प्रत्यासी नया कमाल दिखा पाएगी! फ़िलहाल नगर में प्रचार जोर पकड़ता नजर आ रहा हैं!