ओंकारेश्वर में फिर हादसा: नर्मदा स्नान के दौरान इंजीनियर युवक लापता

ओंकारेश्वर नर्मदा नदी में बार-बार हो रहे डूबने की घटनाओं ने प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्थाओं पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के इंतज़ाम नाकाफी, पहले भी कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पूरी रिपोर्ट पढ़ें।

ओंकारेश्वर में फिर हादसा: नर्मदा स्नान के दौरान इंजीनियर युवक लापता

चार माह बाद होने वाली थी शादी; परिजनों ने शव ढूंढने वाले को ₹21,000 इनाम घोषित—अब व्यवस्था पर बड़े सवाल

अजीत लाड़ @ khabarbharatnews.Live

खंडवा। तीर्थस्थल ओंकारेश्वर में नागर घाट पर रविवार दोपहर करीब 2 बजे नर्मदा स्नान के दौरान रामकृष्ण बिरला (26) लापता हो गए। वे मूलतः भूलगांव, जिला खरगोन के निवासी थे और इंदौर में रहकर हाल ही में इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद करियर की तैयारी कर रहे थे। परिवार का इकलौता सहारा माने जाने वाले रामकृष्ण की शादी चार माह बाद तय थी। घटना के घंटों बाद तक शव बरामद नहीं हो सका था। होमगार्ड और स्थानीय गोताखोर लगातार सर्च ऑपरेशन में जुटे हैं। परिजनों ने शव ढूंढ निकालने वाले को ₹21,000 नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है।

घटनाक्रम: कुछ ही पल में बदल गई खुशियों की दोपहर

रविवार को रामकृष्ण अपने चार दोस्तों के साथ ओंकारेश्वर आए थे। स्नान के दौरान वे तेज़ बहाव के साथ गहरे पानी में चले गए। साथियों ने मदद के लिए शोर मचाया; सूचना पर पुलिस, होमगार्ड और स्थानीय प्रशासन की टीमें मौके पर पहुँचीं। नदी की धार तेज होने और तलहटी में कटान के कारण तलाश में दिक्कतें बनी हुई हैं।

“पहले भी ऐसी घटनाएं”—फिर वही सवाल: चेतावनी, निगरानी और बचाव कहाँ?

ओंकारेश्वर जैसे धार्मिक-पर्यटक स्थल पर बीते वर्षों में डूबने की कई घटनाएँ सामने आती रही हैं। हर बार चेतावनी बोर्ड, बैरिकेड, लाइफगार्ड तैनाती, रेस्क्यू बोट और पब्लिक एड्रेस सिस्टम की बात होती है, मगर कुछ समय बाद व्यवस्थाएँ ढीली पड़ जाती हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि पीक सीज़न में भी घाटों पर सुरक्षा इंतज़ाम अक्सर काग़ज़ी रहते हैं—नतीजा, दुर्घटना होते ही घंटों की हड़बड़ी और बाद में खानापूर्ति।

तीन स्थायी समस्या-बिंदु जो बार-बार उभरते हैं:

1. अनचिह्नित गहरे हिस्से: कई घाटों पर सुरक्षित/असुरक्षित ज़ोन का स्पष्ट डिमार्केशन नहीं।

2. तुरंत मदद का अभाव: लाइफ जैकेट, लाइफ रिंग, रेस्क्यू रोप और फर्स्ट-रिस्पॉन्स टीम हर समय उपलब्ध नहीं मिलती।

3. चेतावनी/घोषणा प्रणाली कमजोर: तेज़ बहाव, अचानक जल-स्तर परिवर्तन या फिसलन की रियल-टाइम घोषणा कम सुनाई देती है।

प्रशासन और व्यवस्थाओं पर सात सीधे सवाल

1. स्थायी लाइफगार्ड रोस्टर—क्या हर प्रमुख घाट पर प्रति शिफ्ट प्रशिक्षित लाइफगार्डों की तय संख्या और उपस्थिति रजिस्टर है?

2. उपकरण उपलब्धता—क्या हर घाट पर कार्यशील रेस्क्यू बोट, लाइफ जैकेट/रिंग्स, रेस्क्यू पोल, स्ट्रेचर, ऑक्सीजन किट मौजूद और उपयोग-योग्य हैं?

3. ज़ोनिंग और बैरिकेडिंग—क्या लाल/पीले/हरे सुरक्षितता-ज़ोन मार्किंग, रस्सी-बैरिकेड और फ्लोटिंग बूम लगाई गई हैं?

4. रियल-टाइम अलर्ट—क्या PA सिस्टम, डिजिटल साइन बोर्ड और सायरन से बहाव/जल-स्तर परिवर्तन की लाइव चेतावनी दी जाती है?

5. रिस्पांस टाइम—पानी में गिरने/डूबने की सूचना पर पहली प्रतिक्रिया (Golden Minutes) का औसत समय क्या है?

6. समन्वय व्यवस्था—जल-स्तर/धार में बदलाव हेतु डैम/बैराज संचालन से प्रशासन का पूर्व-सूचना तंत्र चालू है?

7. घटना-पश्चात ऑडिट—क्या हर हादसे के बाद जांच रिपोर्ट सार्वजनिक होती है और उसकी सिफारिशों पर समयबद्ध अनुपालन होता है?

सिस्टम गैप–एनालिसिस: समस्या कहाँ अटकती है?

योजना बनाम क्रियान्वयन: त्योहार/भीड़ के मौसम में कागज़ी प्लान भरपूर, लेकिन ग्राउंड-लेवल निगरानी कमजोर।

मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) की अनुपालना: SOP तो है, पर ड्यूटी चार्ट, हाजिरी और निरीक्षण ढीले।

जवाबदेही का अभाव: हादसे के बाद नियत दंड और जिम्मेदारी तय नहीं होने से ढिलाई बनी रहती है।

स्थानीय प्रशिक्षण की कमी: पुजारियों, घाट-सेवकों, नाविकों, दुकानदारों को बेसिक रेस्क्यू/CPR का नियमित प्रशिक्षण नहीं मिलता।

अब क्या होना चाहिए—10 ठोस सुधार जो तुरंत लागू किए जा सकते हैं

1. घाट-वार सेफ्टी प्लान: हर घाट के लिए अलग रिस्क मैप, गहरे/कटाव क्षेत्रों का स्पष्ट नक्शा ऑनलाइन/ऑफ़लाइन।

2. 24×7 रेस्क्यू डेस्क: सीज़न में नागर घाट समेत प्रमुख घाटों पर स्थायी रेस्क्यू कियोस्क और प्रथम उपचार केंद्र।

3. लाइफगार्ड और बोट: प्रति घाट कम-से-कम 4–6 प्रशिक्षित लाइफगार्ड, एक मोटराइज्ड रेस्क्यू बोट, ड्यूटी रोस्टर सार्वजनिक।

4. डिजिटल चेतावनी: PA सिस्टम + LED बोर्ड पर बहाव/जल-स्तर/फिसलन अलर्ट; हिंदी/अंग्रेज़ी में सतत घोषणाएँ।

5. फ्लोटिंग बैरियर/रोपवे: स्नान-सीमा तक फ्लोटिंग रस्सियाँ/बूम, उससे आगे प्रवेश कड़ाई से निषिद्ध।

6. डैम–एडमिन समन्वय: जल-स्तर परिवर्तन की पूर्व-सूचना अलर्ट जिला कंट्रोल-रूम और घाटों तक ऑटो-पुश।

7. स्वयंसेवक–नेटवर्क: स्थानीय नाविक/पुजारी/व्यापारी संगठनों के साथ रैपिड रिस्पॉन्स वालंटियर टीम।

8. CCTV व ड्रोन निगरानी: भीड़/जोखिम-ज़ोन की वास्तविक समय निगरानी, कंट्रोल-रूम से निर्देश।

9. दंड और प्रवर्तन: खतरनाक ज़ोन में प्रवेश/सेल्फी/स्टंट पर स्पॉट फाइन, दुकानदारों के लिए सेफ्टी-कोड।

10. घटना-पश्चात ऑडिट: हर केस की पब्लिक रिपोर्ट 30 दिन में; सिफारिशों पर अनुपालन रिपोर्ट ऑनलाइन।

पीड़ित परिवार की अपील और भीड़ के लिए सावधानियाँ

परिजन शव की तलाश में मदद करने वालों से गुहार लगा रहे हैं और ₹21,000 का इनाम घोषित कर चुके हैं। श्रद्धालु/पर्यटक इन बातों का पालन करें:

चिह्नित सीमा के भीतर ही स्नान; लाइफगार्ड की हिदायत अनिवार्य रूप से मानें।

तेज़ बहाव/बारिश के बाद गहरे हिस्सों से दूर रहें—किसी भी हालत में सेल्फी/स्टंट नहीं।

बच्चों/बुज़ुर्गों को अकेला न छोड़ें; फिसलन वाले पत्थरों से सावधान।

आपातकाल: घाट पर प्रदर्शित हेल्पलाइन/कंट्रोल-रूम नंबर पर तुरंत सूचना दें।

आस्था के साथ सुरक्षा भी अनिवार्य :

यह हादसा केवल एक परिवार की अपूर्ण कहानी नहीं, प्रशासनिक ढांचे की अधूरी तैयारी का दर्पण भी है। ओंकारेश्वर की पहचान आस्था और नर्मदा की महिमा से है; मगर वही आस्था, अगर प्रणालीगत लापरवाही से टकराए, तो दुःख में बदल जाती है। अब ज़रूरत इवेंट-आधारित सजावट से आगे बढ़कर स्थायी सुरक्षा ढाँचे बनाने की है—ताकि अगली खबर भक्त-सेवा की हो, हादसे की नहीं।