भोपाल गैस त्रासदी: सत्ता, नियत और न्याय की विफलता
1984 की भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे भयंकर औद्योगिक आपदाओं में से एक थी। कांग्रेस की नीतियों और प्रशासनिक विफलताओं ने कैसे पीड़ितों को न्याय और सुरक्षा से वंचित किया। जानिए पूरी कहानी और प्रभाव।
1984 की भोपाल गैस त्रासदी आज भी भारतीय इतिहास की सबसे गंभीर औद्योगिक आपदाओं में गिनी जाती है। 2–3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का फैलाव हजारों लोगों के लिए मौत और जीवन भर के स्वास्थ्य संकट की वजह बन गया। तत्काल मृतक सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 3,500 थे, लेकिन दीर्घकालिक प्रभावों से यह संख्या तकरीबन 20,000 से ऊपर पहुंची। प्रभावित लोगों की संख्या आधिकारिक रूप से लगभग 5.7 लाख दर्ज की गई है। यह केवल औद्योगिक त्रासदी नहीं थी; यह प्रशासन, कानून और राजनीतिक नेतृत्व की असंवेदनशीलता का भी दर्पण थी।

केंद्र और मध्यप्रदेश दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की जिम्मेदारी थी कि वे पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करें। लेकिन सत्ता और उद्योगपति मित्रता ने आम जनता की सुरक्षा और न्याय पर विजय पा ली। यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार किया गया, लेकिन छह घंटे के भीतर ही ज़मानत पर रिहा कर दिया गया और उन्हें दिल्ली ले जाकर सीधे अमेरिका भेज दिया गया।

1989 में कांग्रेस की केंद्र सरकार ने एंडरसन और यूनियन कार्बाइड के साथ $470 मिलियन का मुआवजा समझौता किया, जो पीड़ितों की वास्तविक मांग का मात्र 15 प्रतिशत था। समझौते में यह प्रावधान भी था कि यूनियन कार्बाइड और उसके अधिकारियों के खिलाफ सभी भविष्य के आपराधिक मामले समाप्त हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में 1991 में इसे बरकरार रखा। यह दिखाता है कि उस समय की कांग्रेस की प्राथमिकता आम जनता के अधिकार नहीं, बल्कि औद्योगिक और राजनीतिक संरक्षण था। भारत सरकार ने प्रत्यर्पण के लिए कई अनुरोध किए, लेकिन अमेरिकी अदालतों ने एंडरसन को प्रत्यर्पित करने से इंकार कर दिया। 2010 में भारतीय अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित किया। इस पूरे मामले में यह देखा गया कि कांग्रेस ने शक्तिशाली उद्योगपतियों को संरक्षण देने के लिए लगातार निष्क्रिय और ढीली कार्रवाई अपनाई, जबकि आम नागरिक न्याय के लिए लड़ते रहे।

मध्यप्रदेश की सरकार ने भी न्याय के लिए प्रदर्शन कर रहे पीड़ितों को नजरअंदाज किया। 1985–86 में विधानसभा के बाहर आंदोलनरत पीड़ितों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। फैक्ट्री में अधिकारियों को दस्तावेज देखने और पहुंचने की अनुमति दी गई, जिससे जांच में बाधा आई। पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को परेशान किया गया। हजारों पोस्टमॉर्टम रिपोर्टों और अन्य दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ के आरोप उठाए गए। प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र ने त्रासदी का सही तरीके से निवारण करने में विफलता दिखाई। कांग्रेस की विफलता केवल नीति का परिणाम नहीं थी, बल्कि नियत का भी प्रदर्शन था। सत्ता में रहते हुए उसने औद्योगिक और राजनीतिक संरक्षण को प्राथमिकता दी, आम जनता की सुरक्षा और न्याय को हमेशा द्वितीयक रखा। चुनावों में भोपाल पीड़ितों के लिए संवेदनशील बयान दिए गए, लेकिन वास्तविकता यह रही कि 40 साल बाद भी दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई और पीड़ित न्याय की लड़ाई में उलझे हैं।
भोपाल गैस त्रासदी न केवल औद्योगिक सुरक्षा की विफलता है, बल्कि यह कांग्रेस की नियत, नीति और प्रशासनिक प्राथमिकताओं का भी दर्पण है। यह संदेश स्पष्ट है: यदि आप सत्ता और प्रभाव के केंद्र में हैं, तो कानून और न्याय की सीमाएं आपके लिए नरम हो जाती हैं। वहीं आम नागरिक, चाहे उसकी पीड़ा कितनी भी गंभीर क्यों न हो, सत्ता और उद्योगपति मित्रता के बीच फंस जाता है। यह त्रासदी आज भी हमारी राजनीतिक और सामाजिक चेतना के लिए चेतावनी का काम करती है।

आज भी भोपाल के पीड़ित और उनके परिवार न्याय, स्वास्थ्य और जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह केवल औद्योगिक त्रासदी का परिणाम नहीं है, बल्कि राजनीतिक सत्ता और उसकी प्राथमिकताओं की असमानता का परिणाम भी है। कांग्रेस की भूमिका इस मामले में न्याय और सुरक्षा के पक्ष में नहीं रही। सत्ता और उद्योगपति मित्रता ने पीड़ितों के दर्द को नजरअंदाज किया, और यह भूल से नहीं, बल्कि वर्षों तक प्रणालीगत उदासीनता और प्राथमिकताओं की वजह से हुआ। भोपाल गैस त्रासदी ने भारतीय लोकतंत्र और औद्योगिक सुरक्षा की असली तस्वीर सामने रखी। यह दिखाती है कि सत्ता और उद्योगपति मित्रता की प्राथमिकताओं के सामने न्याय और सुरक्षा कमजोर पड़ सकते हैं। कांग्रेस की नीति और नियत ने यह सुनिश्चित किया कि शक्तिशाली सुरक्षित रहें और आम आदमी पीड़ा और न्याय की लड़ाई में फंसा रहे। पीड़ितों का संघर्ष और उनका दर्द आज भी जीवित हैं, और यह कांग्रेस के नेतृत्व और नीति का स्थायी सबक बन गया है।