फटाकों से ज्यादा बड़ा धमाका — सिस्टम की सच्चाई! छोटे फटाका व्यापारियों पर पुलिस की पैकेट वसूली और जप्ती कार्रवाई — गरीबों की मेहनत पर डाका या नियमों की आड़ में अन्याय?

खंडवा में छोटे फटाका व्यापारियों से पुलिस द्वारा कथित ‘फ्री पैकेट वसूली’ और उसके बाद की गई फटाका जप्ती ने सवाल खड़े कर दिए हैं। वैध लाइसेंसधारी छोटे कारोबारियों पर कार्रवाई जबकि बड़े गोडाउन संचालक नियम तोड़ते हुए खुलेआम व्यापार कर रहे हैं — क्या यह न्याय है या रसूखदारों का संरक्षण? जानिए पूरे मामले की सच्चाई और व्यापारियों की पीड़ा इस खास रिपोर्ट में।

फटाकों से ज्यादा बड़ा धमाका — सिस्टम की सच्चाई! छोटे फटाका व्यापारियों पर पुलिस की पैकेट वसूली और जप्ती कार्रवाई — गरीबों की मेहनत पर डाका या नियमों की आड़ में अन्याय?

छोटे फटाका व्यापारियों पर कार्रवाई, बड़े कारोबारियों पर कृपा क्यों?

 

खंडवा। त्योहार खुशियों का प्रतीक होते हैं — पर जब खुशियों के बीच अन्याय की चिंगारी सुलग उठे, तो समाज की आत्मा झुलस जाती है। दीपावली के पहले छोटे फटाका व्यापारी उम्मीद लेकर अपने स्टॉल लगाते हैं, ताकि बच्चों की मुस्कान और परिवार का खर्च दोनों साथ चल सके। लेकिन इस बार फटाकों से पहले ही पुलिसिया कार्रवाई का धमाका हो गया।

 

वैध लाइसेंस लेकर, थोड़ी-बहुत पूंजी से व्यापार शुरू करने वाले छोटे व्यापारियों के साथ ऐसा व्यवहार हुआ मानो उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो। पहले तो "पैकेट वसूली" के नाम पर जेबें गर्म की गईं, और जब उससे भी तृप्ति नहीं हुई — तो उन्हीं व्यापारियों के फटाके जब्त कर लिए गए।

 

वाह साहब, वाह!

गरीबों के स्टॉल पर छापा मारकर, दो-चार पटाखे उठाकर, कैमरे के सामने फोटो खिंचवाकर अपने कर्तव्य का प्रदर्शन करना — वाकई काबिले तारीफ़ है!

ऐसे "वीर साहबों" को तो राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित करवाना चाहिए, आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर सीधे मुख्य सचिव या DGP बना देना चाहिए। आखिर गरीब पर कार्रवाई करना, अमीर पर मौन रहना — यही तो असली वीरता है ना?

 

इसी शहर और असपास के क्षेत्र में रात के अंधेरे में बड़े गोदामों से ट्रकों की कतार लगाकर फटाके बिक रहे हैं। वहाँ नियमों की धज्जियाँ उड़ रही हैं — पर कार्रवाई? नहीं होती। कारण साफ़ है — रसूख, पहुँच और मोटे पैकेटों का असर।

 

जबकि PESO की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक सूर्यास्त के बाद किसी भी प्रकार का विस्फोटक पदार्थ बेचना सख्त रूप से प्रतिबंधित है। पर बड़े कारोबारियों के लिए नियम सिर्फ किताबों तक सीमित हैं।

 

और सबसे बड़ी बात —

इन होलसेल फटाका कारोबारियों द्वारा की जा रही GST चोरी। खुलेआम कच्चे बिल पर करोड़ों की बिक्री, बिना पक्का बिल दिए। शासन को लाखों-करोड़ों की राजस्व हानि, लेकिन कार्रवाई फिर भी “शून्य”।

 

इधर छोटे व्यापारी दिन-रात अपने बच्चों के साथ काम कर रहे हैं, कर्ज लेकर माल लाए हैं — और जब त्योहार के दिन आते हैं, तो साहबों के “फ्री फटाका पैकेट” की डिमांड आने लगती है।

एक व्यापारी की व्यथा सुनिए —

“साहब का पैकेट कल ही दे चुका था, लेकिन थाने से साहब का फोन आया कि हमसे बड़े साहब का पैकेट जल्दी भेजो, नहीं तो देख लेंगे!” बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाया कि साहब का फटाके का पैकेट कल ही जा चूका है...

 

यह “फ्री का फटाका” और “फ्री की मिठाई” का सिस्टम आखिर कब तक चलेगा?

कब तक छोटा व्यापारी साहबों की ‘फ्री सेवा’ में झुका रहेगा, और बड़े रसूखदार खुलेआम नियम तोड़ते रहेंगे?

 

त्योहार न्याय का प्रतीक होना चाहिए, पर आज हालात ऐसे हैं कि छोटे कारोबारी डर में, और बड़े व्यापारी ठाठ में हैं।

 

सरकार और प्रशासन से यही सवाल —

क्या कानून सिर्फ कमजोरों के लिए है?

क्या ईमानदार लाइसेंसधारी व्यापारी होना अपराध है?

और क्या रिश्वत देकर नियम तोड़ना आज भी “स्मार्ट वर्क” कहलाता है?

 

अब वक्त है — इस फटाका कारोबार की आग में जल रहे छोटे व्यापारियों की आवाज़ सुनी जाए।

वरना दीपावली के दीये बुझ जाएंगे — और अंधेरा सिर्फ सड़कों पर नहीं, न्याय व्यवस्था की आत्मा में भी फैल जाएगा।