मुसीबत बनी राखड़ अब सिंगाजी थर्मल पावर को कमाकर देगी

आपको यह पता ही होगा कि बीड़ और आसपास के करीब 25 गांव के लोग इसी राख से परेशान थे, जो सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट से निकल रही थी। इसकी खपत अभी तक कम ही होती थी।

मुसीबत बनी राखड़ अब सिंगाजी थर्मल पावर को कमाकर देगी

मुसीबत बनी राखड़ अब सिंगाजी थर्मल पावर को कमाकर देगी


खंडवा के सिंगाजी थर्मल पावर और सेल्दा प्लांट की राख से मुंबई में बन रही सड़कें
खंडवा। रूपहली नगरी मुंबई की चिकनी और शानदार सड़कों के निर्माण में अब खंडवा का भी योगदान रहेगा। कभी बाधा बनी बिजली कारखानों से निकलने वाली राख अब वरदान बनने जा रही है। इसकी खेपे सिंगाजी थर्मल पावर और सेल्दा प्लांट से पूना के रास्ते सीधे मुंबई भेजी जाएगी। सारणी से तो 4000 मेट्रिक टन राखड लेकर एक खेप पहुंच भी चुकी है। वहां इसी राखड में केमिकल और अन्य संसाधन मिलाकर सड़क बनाई जा रही है।
आपको यह पता ही होगा कि बीड़ और आसपास के करीब 25 गांव के लोग इसी राख से परेशान थे, जो सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट से निकल रही थी। इसकी खपत अभी तक कम ही होती थी।
सीमेंट के कारखानों में फ्लाई एस के नाम से जानी जाती है। सीमेंट की ईंट बनाने के कारखाने भी लग चुके हैं। अब नए प्रयोग से सड़कों के निर्माण में यह प्रक्रिया तेजी से अपनाई गई, तो कौडिय़ों के दाम में बेची जा रही राख को लेने वाले हाथों हाथ ट्रेनें लेकर खरीदने पहुंच जाएंगे।
समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि एक समय तो सिंगाजी थर्मल पावर स्टेशन में ऐसा भी आया था, जब इस राख के पहाड़ को उठाने के लिए पैसे लगते थे। अब यदि सब कुछ ठीक रहा तो यह राखड भी पावर स्टेशन वालों की कमाई का साधन बन सकती है। यही कारण है कि मुंबई की नई सड़कें अब मध्यप्रदेश के थर्मल पावर हाउस से निकली राख यानी फ्लाई ऐश से बनाई जा रही हैं। इसका इस्तेमाल मुंबई के सी लिंक के लिए भी किया जा रहा है।


खंडवा के सिंगाजी थर्मल पावर हाउस से मालगाडिय़ों के जरिए यह राख मुंबई भेजी जा रही है। सारणी पावर हाउस से 4000 मीट्रिक टन राख की एक खेप हाल ही में पुणे होती हुई मुंबई भेजी गई है। ऊर्जा विभाग के सचिव संजय दुबे ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि पहली बार मालगाड़ी के जरिए राख भेजने का प्रयोग सफल रहा। आरपी पांडे, जीएम, एमपीपीजी सीएल ने बताया कि सिंगाजी थर्मल पावर स्टेशन से प्रतिदिन लगभग 3000 हजार मेट्रिक याने 50 ट्रक (बलगर) प्रतिदिन निकल रही है। थर्मल पावर द्वारा 10 वर्षों का अल्ट्राट्रेक व वंडर सीमेंट कंपनियों से एग्रीमेंट किया गया है। पहले राख ट्रकों के माध्यम से जाती थी लेकिन विगत कई दिनों से मालगाड़ी के माध्यम से राख भेजी जा रही है। पावर हाउस के फ्लाई ऐश डेम यानी राख बांध पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते है। पावर हाउस के आसपास के इलाके में प्रदूषण कम होगा।
विजय सिंह वर्मा, रिटायर्ड प्रमुख अभियंता, पीडब्ल्यूडी ने बताया कि निर्माण के वक्त सड़क के नीचे की कमजोर मिट्टी के बेस को फ्लाई ऐश यानी राख मिलाकर मजबूत किया जाता है। कंक्रीट की सड़क या मास कांक्रीट के स्ट्रक्चरल कंपोनेंट में भी सीमेंट से साथ फ्लाई ऐश मिलाने से मजबूती बढ़ती है। फ्लाई ऐश की ताकत पानी के साथ सीमेंट जैसी ही मजबूत होती है।