फोरलेन के किनारे दलालों का खेल: किसानों की जमीन से मुनाफा, शासन को लगा रहे चुना
जमीनों की फर्जी खरीद-बिक्री ही नहीं, बल्कि प्लॉटिंग के नियमों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कृषि भूमि को डायवर्जन कराए बिना कमर्शियल उपयोग में बेचा जा रहा है। शासन को इस खेल की खबर क्यों नहीं है? क्या शासन की नज़र से यह सब छुपा हुआ है, या फिर आंखें मूंद कर करोड़ों के राजस्व का चुना लगवाया जा रहा है?
खंडवा। इंदौर-ऐदलाबाद फोरलेन की शुरुआत के साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे किसानों की जमीनें भूमाफिया के जाल में फंसने लगी हैं। दलाल किसानों की जमीन को सस्ते दामों पर खरीदकर दो-तीन गुना अधिक कीमत पर व्यापारियों को बेच रहे हैं, और इस खेल में शासन को करोड़ों का राजस्व नुकसान हो रहा है।
किसानों की जमीन किसके हाथ में जा रही? दलालों का बढ़ता दबदबा
ताजा मामला ग्राम बोरगांव बुजुर्ग का है, जहां किसान नारायण महाजन की जमीन को खंडवा निवासी याकूब नामक दलाल ने साधारण सौदा चिट्ठी पर खरीदा। इसके बाद उसी जमीन को खिराला के व्यापारी कय्यूम को 16 लाख रुपये में और फिर पवन श्रीवास्तव को 23 लाख में बेच दिया। आश्चर्यजनक बात यह है कि रजिस्ट्री में इस पूरी प्रक्रिया को मात्र तीन लाख रुपये में दिखाया गया। आखिर दलाल और व्यापारी शासन की आंखों में धूल झोंककर कब तक यह खेल खेलते रहेंगे?
सौदा चिट्ठी पर लाखों की लूट, कृषि भूमि से हो रहा व्यवसायिक फायदा
इन दलालों ने जमीन की सौदेबाजी का ऐसा जाल बिछाया है कि गरीब किसान अपनी जमीन खो रहे हैं और इसकी रजिस्ट्री में सरकारी नियमों का उल्लंघन हो रहा है। बिना डायवर्जन के कृषि भूमि को व्यवसायिक उपयोग के लिए बेच दिया जा रहा है, और इससे शासन को राजस्व की भारी हानि हो रही है। क्या प्रशासन इस गड़बड़ी से अनजान है, या फिर जानबूझकर इसे अनदेखा कर रहा है?
क्या फोरलेन के बहाने ‘लैंड जिहाद’ का खेल हो रहा है?
इंदौर-इच्छापुर फोरलेन के आसपास सैकड़ों ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां दलाल किसानों से जमीन औने-पौने दाम में खरीदकर व्यापारियों को ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं। नेशनल हाईवे अथॉरिटी द्वारा नोटिस जारी होने के बाद भी, ऐसे मामलों में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा। क्या यह एक बड़ा षड्यंत्र है, या फिर फोरलेन के नाम पर किसानों को ठगने की साजिश?
कौन देगा इस लूट-खसोट का जवाब?
किसानों की जमीन का एकमुश्त सौदा कर कई टुकड़ों में रजिस्ट्री कराई जा रही है और मुनाफा दलालों की जेब में जा रहा है। इस गोरखधंधे से शासन को करोड़ों का चुना लग रहा है। आखिरकार इन दलालों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी किसकी है?
कब तक चलते रहेंगे अवैध सौदे और फर्जी रजिस्ट्रियां?
किसानों से कम कीमत पर जमीन लेकर इसे कई गुना दाम पर बेचने का यह खेल आखिर कब तक चलेगा? सरकार कब इस भूमि माफिया पर अंकुश लगाएगी और कब किसानों को उनका हक मिलेगा? यह सवाल है जिसका जवाब क्षेत्र की जनता और किसान अब शासन-प्रशासन से मांग रहे हैं।