एग्ज़िट पोल की जीत: डेटा, धारणा और लोकतंत्र का वैज्ञानिक चेहरा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एग्ज़िट पोल्स ने लगभग सटीक परिणाम दिए। जानिए कैसे वैज्ञानिक सैंपलिंग, डेमोग्राफिक मैपिंग और डेटा मॉडलिंग ने एग्ज़िट पोल को एक विश्वसनीय लोकतांत्रिक संकेतक में बदला।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के आधिकारिक नतीजों ने एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया। इस बार एग्ज़िट पोल्स ने लगभग वही रुझान दिखा दिया था, जो अंततः मतगणना में सामने आया। यह वही बिहार है, जहाँ 2015 के चुनाव में अधिकांश एग्ज़िट पोल बुरी तरह चूक गए थे और 2020 में भी कई अनुमानों ने विचलन दिखाया था। लेकिन 2025 के चुनाव ने यह भरोसा मजबूत किया कि यदि सैंपलिंग वैज्ञानिक, बूथ चयन सटीक और जनसांख्यिकीय विश्लेषण गहरा हो, तो एग्ज़िट पोल महज अनुमान नहीं, बल्कि एक विश्वसनीय शोध-संकेतक बन सकते हैं। सबसे पहले बात कामख्या एनालिटिक्स की। एजेंसी ने एनडीए के लिए 167–187 सीटों की रेंज दी थी, और अंतिम नतीजे जब इसी के आसपास ठहर गए, तो साफ हो गया कि इसकी सैंपलिंग रणनीति सबसे अधिक सटीक साबित हुई। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ जातीय-सामाजिक जटिलताएँ बहुत गहरी हैं, इस स्तर की भविष्यवाणी आसान नहीं होती। इसका अर्थ है कि कामख्या ने बूथ चयन, जातिगत वेटेज और क्षेत्रीय विविधताओं का अध्ययन इतनी बारीकी से किया कि ज़मीनी संकेत सही पैमाने में कैप्चर हो गए।
मेट्राइज़ (147–167) और टुडेज़ चाणक्य (148–172) ने भी एनडीए को स्पष्ट बहुमत में दिखाया था, और वास्तविक नतीजों ने उनके अनुमानों को लगभग पूरी तरह सही साबित किया। विशेषकर चाणक्य की मॉडलिंग, जो पिछले कुछ वर्षों में अपनी उच्च सटीकता के लिए पहचानी जाती है, एक बार फिर भरोसेमंद निकली। महागठबंधन के लिए कामख्या (54–74), मेट्राइज़ (70–90) और चाणक्य (65–89) द्वारा दी गई रेंज भी परिणामों से काफी मेल खाती रही, जो बताती है कि इन एजेंसियों ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ताकत का संतुलित आकलन किया था। छोटे दलों की भविष्यवाणी करना आमतौर पर सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि उनका वोट बिखरा हुआ होता है और उनका प्रभाव क्षेत्र-विशेष तक सीमित रहता है। लेकिन इस बार यहाँ भी सटीकता उल्लेखनीय रही। उदाहरण के तौर पर मेट्राइज़ ने जेएसपी/जेएसयूपी को ठीक 5 सीटें दी थीं, जबकि एक्सिस माय इंडिया ने 0–2 सीटों की संभावना जताई थी और चुनाव परिणाम इन्हीं अनुमानों के आस-पास रहे। पीपल्स पल्स ने एनडीए के लिए 133–159 और महागठबंधन के लिए 75–101 का व्यापक रेंज दिया था, फिर भी उसका आकलन अंतिम ट्रेंड की दिशा के बिल्कुल अनुरूप रहा। इसी तरह भास्कर एग्ज़िट पोल (145–160 / 73–91) भी बिना किसी बड़े विचलन के, राजनीतिक हवा को पढ़ने में सफल रहा।
अन्य एजेंसियाँ—जैसे पी-मार्क, पोलस्टार्ट और पीपल्स इनसाइट ने भले ही अपेक्षाकृत व्यापक रेंज दी हो, लेकिन इन सभी का सामूहिक संकेत एक ही दिशा में था: एनडीए की बढ़त। जब अलग-अलग स्थानों पर काम कर रही टीमें, अलग-अलग मॉडलिंग पद्धतियों, सैंपलिंग फ्रेम्स और डेटा-संग्रह तकनीकों के बावजूद एक ही निष्कर्ष पर पहुँचें, तो यह किसी भी चुनाव विश्लेषण के लिए ‘डेटा-संगति’ का मजबूत प्रमाण होता है। इस बार लगभग सभी प्रमुख एजेंसियों ने बूथ कवरेज का विस्तार किया, डेमोग्राफिक मैपिंग को सूक्ष्म रखा, वोटर प्रोफाइलिंग को वैज्ञानिक दृष्टि से व्यवस्थित किया और सैंपलिंग विधि को पिछले चुनावों की तुलना में कहीं अधिक परिशुद्ध बनाया। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ स्थानीय मुद्दे, जातीय समीकरण और क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ लगातार बदलती रहती हैं, यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी का परिणाम है कि अधिकांश एग्ज़िट पोल असली नतीजों के बेहद करीब उतर आए।
चुनावी परिणामों के बाद एक और तथ्य सामने आया कुछ राजनीतिक हलकों में जिस “फेक एग्ज़िट पोल” का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की गई थी, वह इस बार पूरी तरह धराशायी हो गया। सामूहिक सटीकता इतनी प्रबल थी कि किसी भी तरह के आरोप स्वतः ही निरर्थक साबित हो गए। जनता ने भी देखा कि इस बार एग्ज़िट पोल न वास्तविकता से दूर थे, न ही किसी एकतरफ़ा झुकाव वाले प्रतीत हुए। 2025 का यह चुनाव एक बड़ी सीख छोड़ता है। लोकतंत्र सिर्फ राजनीति की समझ पर नहीं चलता, बल्कि डेटा, सांख्यिकी, समाजशास्त्र और वैज्ञानिक पद्धतियों पर भी आधारित है। एग्ज़िट पोल कोई जादू नहीं हैं; वे हजारों वोटरों के व्यवहार, सामाजिक पैटर्न, मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों और सांख्यिकीय विश्लेषण का संयुक्त परिणाम होते हैं। वे 100 फीसदी शुद्ध नहीं हो सकते, क्योंकि समाज और मनुष्य दोनों गतिशील हैं। लेकिन यदि सर्वेक्षण ईमानदार हों, सैंपलिंग वैज्ञानिक हो और डेटा वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करता हो, तो एग्ज़िट पोल ज़रूर चुनावी माहौल का विश्वसनीय संकेतक बनते हैं। बिहार चुनाव 2025 ने इस तथ्य को सबसे सशक्त रूप में सिद्ध किया है। यह चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के लिए, बल्कि चुनाव-अध्ययन और डेटा-विश्लेषण की दुनिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया है। यह संदेश स्पष्ट है वैज्ञानिक दृष्टि, पारदर्शी डेटा और सटीक मॉडलिंग लोकतंत्र को अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाती है। एग्ज़िट पोल इस बार सिर्फ अनुमान नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक समझ का एक वैज्ञानिक दर्पण बनकर उभरे हैं और यह निस्संदेह एक सुखद और प्रेरक संकेत है।